एक दिने जब सवेरे सवेरे, सुरमई की चादर हटा कर एक परबत के तकिये से , सूरज ने सर जो उठाया, तोह देखा दिल की वादी में चाहत का मौसम है और यादों की डालियों पर अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ महेकने लगी है अनकही अनसुनी आरजू, आधी सोयी हवी आधी जागी हवी आंखें मलते हुवे देखती है, लहर डर लहर मौज डर मौज, बहती हवी ज़िंदगी जैसे हर एक पल नई है, और फिर भी वही, हाँ, वही ज़िंदगी जिसके दामन में एक मोहब्बत भी है, कोई हसरत भी है पास आना भी है, दूर जाना भी है, और ये एहसास है वक्त झरने सा बहता हुवा, जा रहा है, यह कहता हुवा दिल की वादी में चाहत का मौसम है और यादों की डालियों पर अनगिनत बीते लम्हों की कलियाँ मेहेकने लगी हैं
"In the End, we will remember not the words of our enemies, but the silence of our friends." ,U NJSBUS "_.
Friday, November 12, 2010
एक दिने जब सवेरे सवेरे
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