Monday, December 6, 2010

बैगन का भर्ता

जब मैं बैगन का भर्ता खाता हूं


तो तुम मुझे याद आती हो


जब मैं जग में पानी भरता हूँ


तो भी दिमाग खराब कर जाती हो हो


इसलिए मैंने भर्ता खाना छॉड.दिया है


सीधे नल से पानी पीना मुश्किल है मगर






जब कभी Delhi 6के गाने सुनता हूँ


वर्तमान में अतीत को ना जाने क्यों दोबारा बुनता हूँ


ना जाने क्यूं मुक्ति के आगे असामान्यता चुनता हूं


अपनी ही भावनाओं को समझना मुश्किल है मगर






जब मैं प्रस्तुतीकरण की तैयारी कर रहा होता हूं


कहीं "Add shapes" में एक आकॄति ढूंढता हूं


न पाता हूं कुछ, न ही खोता हूं


अभी भी घोड़े बेचकर सोता हूं


धुंधले सपनों को संजोना ज़रा मुश्किल है मगर






कभी Mordern art को निगाहों से टटोलता हूं


उन आकॄतियों में मुक्ति की संभावना तोलता हूं


वो बारिश थी, फेवीकोल था, या थी मॄगमरीचिका


न समझ पाता हूं, तो बस डोलता हूं


मन का ठहर जाना, ज़रा मुश्किल है मगर






^^ Just the by product of a contemplative hour that I lived........ Could not finish the stupid thing ...... may do that sometime.....may not ... :-) ...Refinements are obvisouly needed as well.